Life में प्रोब्लेम्स की क्या कभी कोई कमी होती है? लाइफ में जैसे जैसे हम बड़े होते हैं और अपने पंख फैलाते हैं, हमारी प्रोब्लेम्स की लिस्ट भी उसी हिसाब से लंबी होती चली जाती है। लाइफ एक पहेली का रूप लेने लगती है और उसने कई सारी गुत्थियां होती हैं जिसको सुलझाने में जिंदगी फिर निकल जाती है।
प्रोब्लम कुछ भी हो सकती है । किसी की प्रोब्लम छोटी तो किसी की प्रोब्लम बड़ी हो सकती है। प्रोब्लम की वजह भी कुछ भी हो सकती है। कई बार तो प्रोब्लम समझ में ही नहीं आती कि वो प्रोब्लम है।
कुल मिलाकर प्रोब्लेम्स कभी जिंदगी में खत्म होने वाली चीज नहीं है। मगर दुनिया में फिर भी इस सत्य से अधिकांश लोग बेखबर हैं। एक प्रोब्लम अगर सुलझ जाती है तो उसकी जगह कोई दूसरी प्रोब्लम ले लेती है या फिर प्रोब्लम का एक झुंड ही आकर बैठ जाता है लाइफ में।
इसलिए दोस्त अगर जिंदगी जीना है तो सबसे पहले इस सच्चाई को स्वीकार करो कि जो करना है हमको वो प्रोब्लम होने के बावजूद करना है। अक्सर लोग ये कहते मिल जाएंगे कि वो भी अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं मगर उनकी लाइफ में इतनी प्रोब्लेम्स हैं कि वो मजबूर हैं अपनी लाइफ में वो सब ना कर पाने को जो वो करना चाहते हैं। और अपने सपनों के पीछे ना भाग पाने के पीछे अपनी कई सारी प्रोब्लेम्स को गिना दिए हैं।
और फिर जब काफी लंबा समय उन समस्याओं के साथ गुजरने लगता है तो दुख बनता है और हम फिर ना उम्मीद होने लगते हैं। हमारे दुखों की वजह यही होती है कुछ भी अपने प्रोब्लेम्स को सुलझाने में कुछ ना कर पाना।
तो कैसे जिएं अपनी जिंदगी जी भरके ? क्या प्रोब्लेम्स के होते ये हो सकता है ?
देखिए ये बिलकुल संभव है कि आप जैसी जिंदगी चाहेंगे वैसी जिंदगी बना सकते हैं। मगर सिर्फ चाहने से मनचाही जिंदगी नहीं मिलती। यहीं दूसरा सत्य है कि अगर सपनों को साकार करना है तो फिर सिर्फ चाहने से नहीं होगा। पहला सच ये है कि हमारी लाइफ में कई प्रोब्लेम्स हैं और रहेंगी।
तो सबसे पहले तो अपने आपको प्रोब्लेंस के साथ स्वीकार कर लो। खुद से ये कहो कि मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मेरे जिंदगी में प्रोब्लेम्स रहेंगी। एक बार ये आपने दिल से स्वीकार कर लिए तो मन का अंतर्द्वंद्व शांत हो जायेगा जो प्रोब्लेम्स और सपनों के बीच चलते रहता है।
फिर लीजिए दूसरा कदम। दूसरा कदम ये कि जो प्रोब्लेम्स हैं उनको स्वीकारने के बाद ये देखना शुरू करें कि आपकी जिन्दगी में क्या अच्छा हो रहा है या आपकी जिंदगी में ऐसी कौन सी बातें हैं जिनके लिए आप ईश्वर को थैंक्स बोलना चाहे। शायद आपको ये बात कुछ अटपटी सी लगे मगर हम सबकी जिंदगी में हमेशा ऐसे कुछ कारक मौजूद रहते हैं जिसके लिए हम ईश्वर का शुक्रिया अदा कर सकते हैं।
लेकिन ये कला दुर्भाग्य है कि हमें ना तो स्कूल कॉलेज और ना ही समाज परिवार में कोई सिखाता है। हम को ये सिखाया जाता है कि क्या सही नहीं है। गलतियां और कमियां निकालना। ये ही हमारी शिक्षा पद्धति में है कि शिक्षक आपको आपकी कमियां गिनाए। मगर ये आधा अधूरा ज्ञान हुआ। सिक्के के दो पहलू की तरह हर एक बात के भी दो पहलू होते हैं। उसी तरह हमारी जिंदगी में ऐसे बहुत सारे कारक होते हैं जिनको जानकर हमें काफी सुकून मिलेगा।
इस कला को हम कहते हैं दा एक्ट ऑफ़ gratitude। यानि कि जो अच्छा है हमारी लाइफ में उसके लिए कृतज्ञ होना। कृतज्ञ होना एक ऐसी प्रैक्टिस है जो इंसान को इंसान बनाती है।
कृतज्ञ होना क्यों जरूरी है अपने सपनों की खोज में निकलने से पहले ?
दर असल बात ये है कि सवाल यहां पर ये है कि जब हम सिर्फ प्रोब्लेम्स को ही देखते हैं तो हमारे अंदर नकारात्मकता पनपती है। हम जिंदगी के प्रति निराशावादी नजरिया अपना लेते हैं। कोई भी चीज लगता हैं कि ना हो पाएगी। हर तरफ से अंधेरा और सभी दरवाजे बंद दिखते हैं।
वहीं जब अपनी जिंदगी में ऐसी बातें ढूंढ लेते हैं जिनके लिए आप कृतज्ञ होते हैं तब आपको नकारात्मकता नहीं, सकारात्मकता मिलती है। आप ये तो मानते हो कि लाइफ में प्रोब्लेम्स बहुत हैं मगर फिर भी मन में एक आशा, एक उम्मीद भी बनती है कि चाहे जो गलत चल रहा हो, सभी दरवाजे बंद नहीं हैं। और आप फिर उस दरवाजे की खोज में लगते हैं जो आपके लिए खुलेगा। आप संभावनाओं को खोजते हैं।
इस प्रकार जब आप gratitude की प्रैक्टिस को अपनी दिन चर्या में लेकर आते हैं तब आपको लाइफ में ये भी विश्वास मिलता है कि आप अपने सपनों के लिए प्रयास तो कर ही सकते हैं और आप वो अवसर प्रयास का खोना नहीं चाहोगे।
इस तरह का एटीट्यूड हम को बनाने के लिए ऐसे कोच, टीचर या मेंटर या ट्रेनर की मदद लेनी होती है जो हमें सिखा दे कि gratitude प्रैक्टिस कैसे करें। ट्रेनिंग से सब कुछ संभव है। आप सेल्फ ट्रेनिंग भी कर सकते हैं। ऐसी किताबें और वर्क बुक्स मार्केट में उपलब्ध हैं जो आपको अपनी लाइफ में gratitude सीखने और उसे प्रैक्टिस करने में हेल्प करेंगी। आपको जरूरत है तो इस फैसले तक पहुंचने की और फिर प्रैक्टिस करने की।
शुरुआती दौर में जरूर दिक्कतें आती हैं। मगर आप प्रैक्टिस ना छोड़ें और लगातार लगे रहें। धीरे धीरे ही सही मगर आपको gratitude समझ में आने लगेगा और आप फिर ग्रेटिट्यूड को एक हैबिट बना लेंगे। किसी को 6 महीने तो किसी को साल भर भी लग जाता है।
क्या आपको नहीं लगता कि आपको gratitude की प्रैक्टिस करनी चाहिए। अगर पहले से भी खुश हाल इंसान हैं तब भी आप gratitude प्रैक्टिस करके अपनी खुशी का लेवल बढ़ा सकते हैं।