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जॉब लाइफ (Job Life)

जीवन की पाठशाला में असली सक्सेस

मैने बचपन से एक बात पर हमेशा ध्यान दिया है। मैने बचपन से इस बात पर ध्यान दिया कि मैं अपने आपको अपडेट करूं, अपस्किल करूं और अपग्रेड करूं।

इसलिए हमेशा अपने आपको लर्निंग से जोड़ कर रखा। मैं आज भी उसी धुन से सुबह का अखबार उठाता हूं पढ़ने के लिए जिस धुन से कई सालों पहले उठाया करता था जब मैं कंपटीशन परीक्षाओं की तैयारी किया करता था।

अखबार पढ़ना अपने आप में एक स्कूल है

मेरा फेवरेट न्यूज पेपर हैं दा हिंदू। दा हिंदू एक अंग्रेजी अखबार है। ये अखबार प्रतियोगी छात्रों के बीच सबसे ज्यादा पढ़े जाना वाला अखबार है। इसके मसाला न्यूज के बजाय तथ्यात्मक और बौद्धिक मापदंड के विविध प्रकार के लेख छपते हैं।

मैं आपको सच बताऊं कि मुझे आज भी दा हिंदू को अपने हाथ में पकड़कर वही रोमांच महसूस होता है जो उन दिनों हुआ करता। न्यूजपेपर पढ़ना मेरी हैबिट बन गया और ये हैबिट मुझे न सिर्फ जनरल नॉलेज देती है बल्कि मुझे रोमांचित करती है और मेरे मन मस्तिष्क में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार करती है।

मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैं कभी किसी एक लाइन पर ज्यादा नहीं टिका। स्कूल में साइंस और मैथ्स चुना दसवीं बोर्ड के बाद। फिर कॉलेज में साइंस मैथ्स को लेकर bsc में तीन साल लगातार फेल होने के बाद होटल मैनेजमेंट किया और फिर तकरीबन एक दशक कॉल सेंटर में नौकरी की। आज अब तकरीबन एक दशक से ज्यादा समय ही गया बैंकिंग से जुड़ा हुआ हूं।

मेरे कैरियर में स्कूल कॉलेज की पढ़ाई से ज्यादा मुझे काम आया वो है जो मैने स्कूल कॉलेज से बाहर आकर सीखा। मेरी पहली जॉब लगी थी एक वकील के यहां पर बतौर कंप्यूटर ऑपरेटर। वहां 1000 की सैलरी लेकर एक महीने काम करने का मौका मिला। और ये मौका इसलिए मिला क्योंकि मैं एक कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में कंप्यूटर का कोर्स कर रहा था।

कॉल सेंटर में काम करके जो सीखा, वो और कहीं नहीं सीख सकते

फिर जब मैने कॉलेज करने के बाद नौकरी ढूंढने शुरू की तो मुझे कॉलेज की पढ़ाई से नहीं बल्कि मेरे अंग्रेजी के ज्ञान की वजह से कॉल सेंटर में मिली। कॉल सेंटर वालों को इस बात से कोई मतलब नहीं था कि मैंने कॉलेज से कौन सी डिग्री ली है। मेरे साथ जिनको सिलेक्ट किया गया उसमे कई अभी कॉलेज की पढ़ाई कर ही रहे थे। कुछ तो सिर्फ 12th पास मगर अंग्रेजी में फर्राटेदार।

और जब मैंने बैंकिंग की तरफ रुख किया तब मुझे जनरल नॉलेज, इंग्लिश नॉलेज और मेरी इकोनॉमी और फाइनेंस में रुचि से फायदा मिला। हां इतना कॉलेज से जरूर काम आया की उस सालों की मेहनत से एक सर्टिफिकेट हासिल हुआ जिस पर ग्रेजुएट लिखा था जिसने मुझे बैंकिंग परीक्षा में बैठने के लिए पात्र बनाया।

कुल मिलाकर मुझे जो मैने अनौपचारिक रूप से पढ़ा और अनुभव इक्ट्ठा किया वो बहुत काम आया। स्कूल और कॉलेज की औपचारिक पढ़ाई का लिमिटेड रोल रहा मेरे कैरियर ग्रोथ में।

इसलिए मैं ये मानता हूं कि हमें अपनी जिंदगी जीने के लिए जो कुछ सीखना है जरूरी नहीं है कि हमारे कॉलेज या स्कूल के सिलेबस में मिले। क्या आपकी स्कूलिंग आपको सिखाती है कि इन्वेस्टिंग कैसे करनी चाहिए, पैसे कैसे बचाएं और कैसे फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस पाएं। क्या आपके कॉलेज ने आपको सिखाया कि अपना लाइफ पार्टनर कैसे चुनें, उनके साथ कैसा व्यवहार करें और कैसे अपने संबंध मजबूत बनाएं।

नहीं! कोई नहीं सिखाएगा आपको। आपकी फॉर्मल एजुकेशन आपको खुश रहने के नुस्खे नहीं बताती और आप तब तक परेशान रहते हैं जब तक आपको सेल्फ हेल्प बुक्स और लाइफ कोच नहीं मिलते। और अगर मिल भी गए तो उनकी विश्वसनीयता की कोई गैरेंटी नहीं होती। खुद से ही प्रयोग करके ज्ञान अर्जित करने के बाद ही आपको आत्म ज्ञान मिलता है जो आपको सुखी और प्रसन्नचित बनाएगा।

कॉलेज के बाद तो असली पढ़ाई शुरू होती है

मैं आपको आज जिस उम्र के पड़ाव पर हूं ये कह सकता हूं कि हमारे टीचर सही कहते थे। हमारे टीचर सही कहते थे कि ग्रेजुएशन के बाद ही असली पढ़ाई शुरू होती है। क्योंकि औपचारिक पढ़ाई के बाद फिर हमें खुद अपना सिलेबस तय करना होता है।

और हमारा सिलेबस बनता है हमारे जीवन में मौजूद और आने वाली चुनौतियों से। और पग पग हमारी परीक्षा ली जाती है जहां हम कई बार कई सालों तक एक ही पेपर दे रहे होते हैं। और तब तक देते रहतेचैन जब तक वो गलती सुधार ना लें।

इसलिए मैं कहता हूं कि स्कूल कॉलेज की पढ़ाई से ज्यादा मत सोचें। ना तो अच्छा पढ़ने वाला लाइफ में हमेशा अच्छा ही करेगा और ना तो खराब पढ़ने वाला हमेशा फेल ही होता रहेगा। आपकी सफलता तो इस बात से तय होगी कि आप अपने आपको कैसे और कितना अपस्किल, अपडेट और अपग्रेड करते रहेंगे।

इसलिए मेरी मानिए तो अपने अंदर का छात्र कभी अपने अंदर मरने मत दीजिए। लाइफ लॉन्ग स्टूडेंट वाला नजरिया रखें और हर पल हर जगह कुछ न कुछ नया सीखते रहें।

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