आज अपनी डायरी में अतीत के पन्नों से कुछ कहना चाहता हूं।
मुझे कॉलेज छोड़े अभी कुछ ही समय हुआ था। कुछ महिने। और मैं अपने कॉलेज हॉस्टल से पी जी में रहने आ गया था।
पी जी में एक ही कमरे में हम तीन गेस्ट रह रहे थे। एक भाई मार्केटिंग इंजीनियर थे, दूसरे अभी इंजीनियर बने थे और नौकरी की तलाश में थे। मेरी तरह।
एक दिन हमारे पी जी में एक और गेस्ट ने एंट्री की। भाई साब गांव छोड़ बेंगलूर शहर आए थे। CA की आर्टिकलशिप करने। शहर में किसी CA के अंडर उन्हें रहकर कुछ महीने काम करना था। उसके बाद ही वो CA बनेंगे।
लेकिन भाई साब की CA की पढ़ाई और यहां तक सफर आसान ना था। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि उनको पी जी में किराए देने के लिए पूरे पैसे भी ना थे।
वो एक बोरी भरके किताबें और एक छोटे बैग में अपने कपड़े लत्ते समेटे शहर को आए थे। उनसे जब मैं बाद में रूबरू हुआ तब जाकर पता चला कि किसके दम पर वो अपने CA के सफर में यहां तक पहुंच पाए थे।
उनके विचार। मुझे बाद में उनसे सब मिल बैठकर बात चीत करने का मौका मिला तब पता चला कि वो भी स्वामीजी के विचारों से बहुत ज्यादा प्रेरित हैं। और हमारे बीच अक्सर स्वामीजी को लेकर गहरी बातें हुआ करती।
उनका एक विचार जो मुझे बडा पसंद आया था जो स्वामीजी ने कही थी। वो बात ये थी कि बिना स्वस्थ शरीर के आप अपने विचार स्वस्थ नहीं रख सकते।
भाई साब बड़े दुबले पतले थे। इतने कि हवा का तेज झोंका उन्हे उड़ा ले जाए मगर वो मेरे डम्बल लेकर सुबह सुबह कसरत करते। डम्बल उठाने से शायद उनकी शरीर की मसल्स उतनी नहीं बन रही थी या मुझे उनके कुर्ते से नहीं दिख रही थीं।
मगर उनके विचारों के ओज और उनकी मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति को जरूर मैं देख पा रहा था। कसरत शारीरिक हो फिर भी हमारे मानस पटल पर अपनी शक्ति को प्रभावित करती है। सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
और मैं आज अपनी फिटनेस जर्नी के इस पड़ाव पर हूं जहां मैने खुद पिछले 6 सालों में अपनी मानसिक और आध्यात्मिक सेहत में जबरदस्त सुधार महसूस किया है।
आज मैं अपने पी जी गेस्ट के अपने दुबले पतले मगर शक्तिशाली भाई साब को दिल से याद कर रहा हूं और ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूं कि जहां पर भी हों अपनी विचारों की ऊर्जा से दूसरों को ऊर्जावान बना रहे हों।