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सेल्फ केयर

अपनी दुआओं पर ध्यान लगाओ, दर्द पे नहीं

ऐसा अक्सर हम सब के साथ होता है कि हम अपनी blessings को भुलाकर दूसरों की blessings को देखने लगते हैं और उन blessings को अपनी लाइफ में देखने की आन्हें भरते हैं| 

“काश मेरे पास भी ये होता जो उसके पास है|  काश मैं भी वहां होता जहां वो है|  काश मेरे पास भी वैसी चीज़ होती |  काश मैं भी उसकी तरह दीखता|  काश !”

मैंने इस सवाल को कई बार अपने आप से पूँछा|  क्या ये बात सच है कि मैं दुनिया में सबसे अभागा हूँ? मगर उत्तर कभी भी पूरी तरह हाँ में नहीं मिला|  और जैसे जैसे उम्र के पहिये आगे बढ़ रहे हैं, मेरे अन्दर से ये आवाज़ निकल रही है, “मैं इतना खुश किस्मत कैसे?”

कई लोग अपनी शक्ल पसंद नहीं करते|  कई लोग अपने माँ बाप पसंद नहीं करते|  कई लोगों को अपना घर पसंद नहीं आता|  कई लोगों को अपना देश और अपना कल्चर भी पसंद नहीं आता|  ऐसा क्यूँ ?

कई बार सोचने विचारने और इन चार दशकों की लाइफ के अनुभव के बाद मैंने पाया है कि ऐसा ही हमें सिखाया गया|  हम अपनी खुद कि आँखों से देखने के बजाय समाज के मापदंडों की आँखों से देखते आये हैं|  और हम समाज में यही सीखते हैं कि हम अधूरे हैं|  वास्तव में हम सभी अपने आप में पूरी तरह कम्पलीट हैं|  लेकिन अगर हम अपने आप से असंतुष्ट हो गए तो ये आर्थिक, सामाजिक और राजनितिक जीवन कैसे चलेगा?

ज़िन्दगी को एक पर्व की तरह जियें|  यहाँ पर आपको जो भी चीज़ मिली है बड़े सौभाग्य से मिली है|  इसलिए शिकायत करने की बजाय उस परमपिता परमेश्वर से बस एक ही चीज़ मांगो|  वो आँखें जो आपको देखना सिखाये और जो भी तुम जीवन में हो उससे प्यार करना सिखाये| 

हमें कनियाँ ढूँढना सिखाया जाता है और ये एक अच्छी कला है|  लेकिन हम हर बात में कमी ढूँढने में लगे हैं|  कोई भी चीज़ अगर अपने आप में पूरी दिख रही है तो उस पर विश्वास नहीं होता है|   

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