आज दिवाली के बाद का दिन है| इसे हम परिवा कहते हैं| परिवा के दिन छुट्टी जैसा माहौल रहता है हालांकि मैं आज भी ड्यूटी जाऊंगा| आज के दिन सबसे ज्यादा दिक्कत आती है मुझ जैसे लोगों को जो काम काजी हैं क्यूंकि हमें अपनी अपनी जॉब्स में जाना होता है और आज के दिन सार्वजनिक वाहन जैसे बसें नहीं चलेंगी|
दिवाली के उत्सव को मनाते मनाते काफी मेहनत मशक्कत हो जाती है| फिर वो चाहे दुकानदार हो या मुझ जैसे फॅमिली मैन| घर में भी कई काम होते हैं छोटे-बड़े सभी| हम लोग घर पे पिछले शायद एक हफ्ते से घर को दिवाली के लिए तैयार करने में लगे थे| इतने छोटे और अटपटे से काम होते हैं कि उसके लिए आप किसी मजदूर को मजदूरी भी देकर नहीं करा पाएंगे जैसे घर के पंखे साफ़ करना| उनको मैंने ही बारी बारी से साफ़ किया है| फिर मेरी पूरी बुक्स बिखरी पड़ी हैं काफी समय से| सिर्फ एक ही बुकशेल्फ है मगर किताबें इतनी कि पूरे घर में तैर रही हैं| उनको समेटते समेटते कुछ दिन लग ही जाते हैं|
घर में रंग रोगन नहीं करवाया नहीं तो उसका बड़ा काम निकल आता और वो काम बिना छुट्टी लिए ना हो पाता| क्यूंकि किराये के मकान में रहते हैं, पैसे बचाने के चक्कर में इस रन रोगन के काम से बच गए| दीवारें कितनी भी चमका लो लेकिन फिर वही बारिश का मौसम आता है और इन दीवारों की हालत वही हो जाती है| हाँ घर के भीतर की दीवारों को जरूर अच्छे से पेंट किया जा सकता है|
मैं सुबह उठकर आज नित्य क्रिया भागने नहीं गया| आज ऐसा लगा कि कुछ समय गुजारूं सुकून से| सुकून इस बात का कि आपके पास भागम भाग से थोड़ी राहत रहेगी| आपको कसरत और रनिंग तो डेली करनी ही चाहिए| हाँ कभी कभी रेस्तिंग डे भी मनाना चाहिए| बॉडी को रेस्ट देने से और रिलैक्स करने से मांस पेशियाँ जो थकी थीं और जो टूटी होंगी उनको फिर से जुड़ने और सवरने का मौका मिलता है रेस्तिंग डे के दिन|
दूसरी बात ये है कि मुझे आज ब्लॉग पोस्ट लिखने का मौका मिल गया| मैं कई बार सोचता हूँ और फिर वो सोच को सच्चाई में नहीं बदल पाता| आज थोडा को रनिंग को ब्रेक देकर ब्लॉग पोस्ट लिखने का समय मिल गया| ब्लॉग पोस्ट लिखने से मेंटल वेलनेस आती है मुझे| जी हाँ जब हम अपने विचारों को किसी भी रूप में व्यक्त कर देते हैं तो हमारे अन्दर सृजनात्मकता आती है और मन भी बहुत हल्का महसूस करने लगता है| साथ ही माइंड को एक सोचने का सही ट्रैक मिल जाता है| जैसे मैं ये जो विचार लिख रहा हूँ इसे मेरे माइंड ने ही पहले प्रोसेस किया और तब जाकर मैं इन्हें यहाँ अपने ब्लॉग पोस्ट पर लिख पाया|
जब आप कि भी सोच को सच्चाई में बदलते हो तब आपको एक उपलब्धि का एहसास मिलता है| उपलब्धि का ये अहसास हमारे मन में शांति लेकर आता है|
बेहतर ज़िन्दगी के लिए सुन्दर विचार
आज सुबह मेरे मन में एक बहुत ही सुन्दर विचार ने एंट्री मारी है| मैं ये सोच रहा था कि हम बचपन में हर चीज़ की एजुकेशन नहीं लेते जिनकी हमें लाइफ में जरुरत पड़ती है| हमें बहुत सारा किताबी ज्ञान दिया जाता है जिसका हमें पढने के बाद कोई इस्तेमाल नहीं होगा लेकिन हमारे बच्चे अपना बहुमूल्य समय जरुरत की चीज़ों को पढने, समझने और सीखने के बजाय फ़िज़ूल में ही अपना समय वेस्ट कर दे रहे हैं|
सेक्स एजुकेसन
तो मैं सोचने लगा कि 45 की उम्र में मैं बहुत कुछ जो जानता हूँ अगर मुझे 15 साल या 20 साल की उम्र में भी सीखने को मिल जाता तो मैं अपनी लाइफ में कई साड़ी उलझनों से बच जाता| ऐसा सोचते ही दो टॉपिक्स मेरे माइंड में तुरंत स्ट्राइक किये| पहला है सेक्स और दूसरा है पैसा|
सेक्स को लेकर हमारे मम्मी पापा, हमारे स्कूल टीचर सभी चुप रहना पसंद करते हैं| कोई नहीं बताता कि हमें अपने से विपरीत सेक्स के साथ किस तरह व्यवहार करना चाहिए और उनके बारे में क्या सोचना चाहिए| और हम सेक्स के बारे में जो भी सीखते हैं वो हमें या तो फिल्म मनोरंजन, आजकल सोशल मीडिया या फिर अपने दोस्तों से जो सुनने को मिलता है| सेक्स एक ऐसा टॉपिक है जिसको हम अपने आप से अलग नहीं कर सकते| और मैंने अपने लाइफ में बहुत सारा समय इस टॉपिक का सच समझने में लगाया होगा|
इसलिए सेक्स के बारे में पुस्तकें छपे| सेक्स के बारे में हम अपने बच्चो से बात करें| सेक्स के बारे में बच्चों में एक स्वस्थ मानसिकता दे पायें ताकि बच्चे सेक्स को लेकर अपनी लाइफ की उससे बड़ी प्राथमिकताओं पर अपना ध्यान लगा सकें| क्यूंकि जब सही समझ नहीं होती है तब उसको लेकर हमारा चंचल और जिज्ञासु मन हमें बहुत परेशान करता है|
फाइनेंसियल एजुकेसन
पैसों के बारे में क्यूँ नहीं बताते हमें बचपन में| ये तो कोई सेक्स जैसा संवेदन शील टॉपिक भी नहीं है| पैसों का ज्ञान हमारी लाइफ को अच्छे से चलने के लिए बहुत जरुरी है| मैंने जॉब में लगने के बाद तकरीबन 10 साल तक जो पैसों को लेकर फैसले किये उनके बारे में सोचकर मन में बहुत ग्लानि होती है| कई बार लगता है कि काश वो सब छोटी छोटी बातें मुझे अगर 25 साल भी समझ में आ गई होतीं तो मैं अपनी लाइफ में 10 साल पहले रिटायर हो सकता|
पता नहीं क्यूँ हमारे माता-पिता हमें पैसों के बारे में भी कोई नसीहत क्यूँ नहीं देते?
जो मुझे समझ में आया है कि पैसों के बारे में हमारे समाज में एजुकेट करने की कोई परंपरा ही नहीं रही और इसलिए उन्हें भी पैसन के साथ कई साड़ी प्रोब्लेम्स को झेलना पडा होगा और वो खुद उलझे रहे होंगे|
इसलिए मैं तमाम बच्चों के लिए यही विश करता हूँ कि उन्हें इन दो टॉपिक्स के बारे में शिक्षा मिले|
इस तरह आज सुबह दो बातों ने मुझे व्यस्त रखा –
- सुकून और दिवाली की दूसरे दिन की थकान
- 45 की उम्र के पड़ाव में अपने बच्चों के भविष्य के लिए उज्जवल सोच
आप का दिन कैसा गया जरुर कमेंट्स में बताएं| अगर कोई ऐसी सोच है जो हमारी ज़िन्दगी को बेहतर बना सकती है तो जरुरु शेयर करें|