भारत देश में जो सबसे बड़ी बात है वो ये कि यहाँ पर सभी धर्म के मानने वाले रहते हैं| इतिहास के अलग अलग काल में अलग अलग धर्म के लोग यहाँ आये और बस गए| भारत ने ना सिर्फ बाहर से आये दुसरे धर्मों को जगह दी बल्कि देश में भी ऐसे धर्मों को जन्म और पनपने का मौका दिया जो फिर पूरी दुनिया में फ़ैल गए|
इस वजह से कुछ ऐसे स्थल बन गए जहां पर एक ही जगह दो धर्मो के धार्मिक स्थल बन गए| और ये महज भारत में ही नहीं हुआ है जहाँ एक स्थल दो धर्म को मानने वालों की आस्था को जोड़ती है| जेरूसलम एक ऐसी ही जगह है जहाँ तीन तीन धर्मों कि आस्था एक ही जगह पर स्थापित है|
ऐसे में विवाद कि स्थिति बनना लाजमी है| ऐसा ही एक हमारे देश में स्थल है जो चर्चा में इसलिए आता है हर साल क्यूंकि यहाँ पर हिन्दू और इस्लाम को मानने वाले ये कहते हैं कि ये जगह उनकी है| हालाँकि वहां पर दोनों ही धर्मों के लोग बड़े प्रेम से जाते हैं और अपना माथा टेकते हैं| मगर कुछ सालों से ऐसी जगह राजनितिक कारणों से संवेदनशील हो गई हैं|
हम इस पोस्ट में बात कर रहे हैं कर्णाटक राज्य में स्थित चिकमंगलूर जिले में बाबा बुदन गिरी की| चिकमंगलूर देश के पश्चिमी घाट में बसा है जहाँ पर देश की सबसे ज्यादा कॉफ़ी की खेती की जाती है| घाटों में कई साड़ी पर्वत श्रृंखलाएं हैं जो बड़ी खूब सूरत हैं और मन को मोह लेती हैं|
कई साल पहले यहाँ पर एक पीर बाबा आये जिनका नाम था बाबा बुदन| बाबा बुदन कहते हैं कि 16वीं सदी में जब मोका, यमन से यहाँ आये तो वो अपने साथ कॉफ़ी भी लेकर आये| ऐसा मन जाता है कि उनके साथ ही यहाँ कॉफ़ी आई और तब से यहाँ पर पूरे घाट में कॉफ़ी की खेती की जाने लगी|
बाबा बुदन के नाम पर ही एक घाटी है जहां पर एक गुफा है| इसी गुफा में बाबा बुदन आकर बसे थे और यही पर वो रहते रहते एक दिन गायब हो गए| माना जाता है कि वो यहाँ से गायब होकर सीधे अपने घर मक्का मदीना पहुँच गए| इस तरह बाबा बुदन को पैगम्बर मोहम्मद कर मसीहा माना जाने लगा और जहां वो रहते थे उस गुफा को दरगाह बना दिया गया| और फिर हर बरस उनके उर्स पर लोग इकठ्ठा होने लगे|
कहते हैं इसी गुफा में हिन्दू धर्म की भी आस्था जुडी हुई है| बाबा बुदन के आने से पहले इसी गुफा में दत्ता स्वामी नाम के एक साधू रहते थे और अपनी तपस्या किया करते| और फिर एक दिन अचानक वो भी अदृश्य हो गए| लोगों में ये बात फ़ैल गई कि दत्ता स्वामीजी स्वयं हिन्दू के तीनों इष्टदेव – ब्रह्मा, विष्णु और शंकर जी के साक्षात् रूप थे जो इस गुफा से गायब होकर सीधे बनारस चले गए और वहां से अपने वैकुण्ठ लौट गए| इसलिए उन्हें दत्ता त्रेय के नाम से जाना जाने लगा| और जो दत्ता त्रेय जी को मानते हैं वो भी यहाँ आते हैं और अपना माथा टेकते हैं|
लेकिन यह गुफा और स्थल इस्लामिक ट्रस्ट के पास है| इसी वजह से हिंदुत्व से जुड़े लोग इसका विरोध करने लगे हैं| वो कहते हैं कि बाबा बुदन से पहले से यहाँ पर दत्ता स्वामीजी आये थे और उनकी गुफा रही इसलिए उन्हें इस स्थल का स्वामित्व और संचालन मिले|
बाबा बुदन का उर्स हर साल दिसंबर महीने में मनाया जाता है जब दत्ता त्रेय की जयंती भी मनाई जाती है| इस कारण दोनों धर्म के गुटों के बीच विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है|