मुझे कई सालों से तलाश थी अपने एक घर की। लेकिन मैं कई सालों तक भटकता रहा अपने घर की तलाश में। नहीं मिला!
घर मेरे लिए एक ऐसी जगह होती है जहां पर मुझे सुकून मिले। कोई परवाह ना हो। कोई रोक टोक ना हो। लेकिन ऐसी जगह कहां है?
एक वाक्य इंग्लिश में बोलते हैं, “feel at home”. इसका मतलब होता है कि आप पूरी तरह रिलैक्स हो जाएं। कोई किसी प्रकार की चिंता ना करें।
लाइफ में हम सबको ऐसी ही सुकून से भरी जगह की तलाश रहती है। जो सबसे पहली जगह हम अपने सुकून को तलाशने निकलते हैं वो है पैसों की दुनिया में। हमें बचपन से सिखाया जाता है कि “तुम पढ़ लिखकर बड़े आदमी बन जाओ!एक बार कुछ बन जाओ फिर पूरी जिंदगी आराम”
कम से कम मुझे तो मेरे माता पिता ने यही कहकर मोटिवेट किया लाइफ में। उनके अनुसार हम लोग काफी तंगी में जी रहे थे। मम्मीजी दूध में पानी मिलाकर हम सबको दिया करतीं। मेरी और भाई की शर्ट एक ही कपड़े से सिया जाते। फलों को पसेरी में पिताजी हफ्ते या महीने में सस्ते दामों पर खरीद लाते और हम लोग इसी फल को खाते जो किफायत दामों पर मिलते। रहते भी किराए के मकान पर।
हर तरफ से किफायत चलती क्योंकि बजट हमारा टाईट रहता। तो मुद्दे की बात यही थी कि खुल के जीने खाने के लिए जो पैसे चाहिए उसके लिए पढ़ो लिखो और किसी बढ़िया ऑफिस में अफसर बन जाओ। सो बचपन से यही सपने देखे सोते जागते।
तब आलम ये था कि कभी कबार जब हम लोग ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़े होते और हमारे पास से कोई आइस क्रीम वाला जुगरता, जबरदस्त इच्छा पैदा होती कि वो कप वाली वनीला ice cream मिल जाती। लेकिन पापा के पर्स में सिर्फ ट्रेन में यात्रा के टिकट के हो पैसे रहते। खाना मम्मीजी घर से बनाकर और पैक करके चलती।
फिर वो हुआ भी कि में अफसर बन गया। बड़ी खुशी हुई कि अब दुनिया की हर खुशी हासिल कर लेंगे क्योंकि अब वो मुकाम हासिल हो गया था कि खुल के खर्च कर सकते थे उन सभी जरूरतों पर जिनके बारे में मैने ऊपर जिक्र किया। खूब ice cream खाएंगे। अब मन पसंद टी शर्ट पहनेंगे और जींस। रहने को बढ़िया मकान मिलेगा जिसमे कम से कम दो कमरे तो होंगे ही।
सब कुछ हुआ जैसे सोचा था! जो मिला उसकी चाहत थी लेकिन उस रेस में दौड़ते दौड़ते जिसने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया था वो मुझे इस बात से वंचित रखे रहा कि क्या मेरे पास था।
अक्सर हम यही गलती लाइफ में करते है। जो होता है उसका कोई जिक्र नहीं करता। उसके लिए कोई ईश्वर को उसके लिए धन्यवाद नहीं देता। उल्टा उस ऊपर वाले को कोस कोस कर ये दुहाई देता है कि कैसे उसकी किस्मत में ये नहीं, वो नहीं और वगैरह वैगैरा।
मैं भी इस बात से अनभिज्ञ था कि जो मेरे पास था वो मेरे सामने होते हुए भी मैं उससे बेखबर था। मेरे पिताजी जो कि मुझे हमेशा कुछ न कुछ नया बताया। फिर एक दिन ऐसा आया कि यमदूत आए और उनके लेकर चले गए।
हमारे पास जो अनमोल संपत्ति होती है वो है हमारा परिवार, हमारे घर के ऐसे लोग जिनका मात्र हमारे जीवन में जुड़े रहना ही हमें feel at home महसूस करा दे जब वो चले जाते हैं तब समझ में आता है कि किस तरह से हम घर से बेघर हो जाते हैं।
हमारा घर वहीं होता है जहां हम feel at home महसूस करें। उनके जाने के बाद मैं बिल्कुल फूट पाथ पर आ गया था। मखमल के गद्दे में बढ़िया घर के आराम के बिस्तर पर भी करवटें बदलते रहते। कहीं भी मन नहीं लगे। दिन रात पिताजी के साथ बिताया समय याद आए और मैं रुक रुक कर यही सोचूं कि काश वो दिन लौट आएं जब हम सब भाई बहन माता पिता एक ही कमरे में खाते पीते सोते और खेलते।
पैसे कम थे मगर घर में जगह ही जगह थी। पूरा समय मम्मी पापा देते हमें। भाई बहन खूब मस्ती करते। मगर अब रोज डाका पड़ता है खुद के समय पर। खुद से रू ब रू तो दूर हमको एक दूसरे के लिए अब टाइम नहीं मिल पाता। शादी हो गई है और कई घर बन गए हैं मगर मैं कहां रहूं। मैं अब से भटक रहा हूं।
फिर मैंने तय किया कि मैं अपना खुद का घर बनाऊंगा। और इस बार बाहर नहीं अपने अंदर बनाऊंगा। उसकी नींव मै खुद रखूंगा और जैसा मैं चाहूंगा वैसा ही उसके सिद्धांत। और इस बार वो नहीं करूंगा जो सिर्फ जगमगाए मगर जब फिर कांच निकल जाए।
कम पैसों में काम चला सकते हैं। उसमे इतनी भाग दौड़ तो नहीं थी।दिल में सुकून था और एक प्यारा घर था।