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हर जगह हर पल consumer बनने से बचें।

Comsume, Consume, Consume, बस consume करते रहो। आज की दुनिया में सिर्फ यही चल रहा है। आज की बाजार उन्मुखी सभ्यता हमें यही कहती है कि जितना हो सके उतना भोग करो। 

हम लोग इंसान हैं। और इंसानों में feelings (भावनाएं) होती हैं। हम इंसान महसूस करते हैं। अहसास करते हैं। जब हम किसी से मिलते हैं तो उस मुलाकात को फिर अहसास में बदलते हैं। सोचते हैं उसके बारे में। 

वो जो समय हम महसूस करते हैं वही सुकून होता है। वो पल जब आपको कुछ करना नहीं है बस जो बीता या बीत रहा है उसको देखते रहना है और महसूस करना है। 

मगर अगर ऐसा होता है कि हम उसे अकेलेपन की कैटेगरी में डाल देते हैं। हम दुनिया से इतने ज्यादा जुड़े रहते हैं कि बस सांसारिकता के भोग में पूरी तरह सने रहते हैं। और हम इतना ज्यादा consume कर रहे हैं कि अपने ही घर के सदस्यों के सामने होने पर भी उन्हें समय नहीं दे पा रहे। 

अगर हम अपनी जिंदगी में खुशी को महसूस करना चाहते हैं तो सबसे पहले सुकून ढूंढें। अपने आपको मशीन बनने से बचाएं। स्मार्ट फोन, सोशल मीडिया, वेब सीरीज, यूट्यूब और सेटलाइट टीवी से अपने आप को अलग कर दें। वो समय आप अपने ऊपर और अपने सगे परिवार और दोस्तों के साथ बितायें। 

क्यूंकि हम अपना पूरा समय मशीनों के साथ बिता रहे हैं, हम human touch को भूलते जा रहे हैं। और इसलिए महसूस करना बंद कर दिया है और इसलिए मन बेचैन और परेशान रहता है और लाइफ में इतना स्ट्रेस बना हुआ है। हम ये ना भूलें कि अच्छा तब महसूस होगा जब आप human bonding में अपना समय बिताओगे। 

अपने स्मार्ट फोन को अपने सीने से हटाकर टेबल की मेज पर छोड़ दें। और कुछ घंटों उस स्मार्ट फोन को वहीं अपने से दूर पड़े रहने दें। आपको ऐसा करने पर बहुत सुकून महसूस होगा। ये मशीन ऐशो आराम के नाम पर स्ट्रेस पैदा कर रही है। मशीन को आप इस्तेमाल करें मगर मशीन के गुलाम बनने से बचें। 

सुकून की जिंदगी के लिए आपको भौतिक ऐशो आराम नहीं चाहिए। सुकून पाने के लिए mental peace ( मानसिक शांति) चाहिए। ज्यादा से ज्यादा अपने हाथ पैर को इस्तेमाल करें। आप अपार्टमेंट में रहते हैं तो सीढ़ियों के सहारे नीचे उतरे और ऊपर नीचे करें। भौतिक सुख जुटाने के बजाय सुनहरी यादें बनाएं। 

कम consume करें और हर जगह हर पल consumer बनने से बचें। खाना अपनी क्षमता से कम खाएं। कम बात करें, कम दोस्त बनाएं, कम खर्च करें, काम खर्च वाले मनोरंजन से साधन अपनाएं। 

मात्रा जब कम रखेंगे और अपने आपको उपभोक्ता मात्र ना मनाकर,एक भावुक इंसान मानेंगे जिसको एहसासों की जरूरत पड़ती है तो आप की जिंदगी की गुणवत्ता बढ़ेगी। भोगी बनने से आप सुखी नहीं बनेंगे!  

विलासिता को अपनी जरूरत ना बनाएं। संघर्ष को अपने जीवन का हिस्सा मानकर चलें। जब आप सीमित वस्तुओं के साथ अपनी जिंदगी जियेंगे तब आप अपने आसपास कबाड़ इक्ट्ठा करने की गलती से बचे रहेंगे। सीमित साधनों वाली लाइफस्टाइल सेलेक्ट करें। इससे आप के जीवन में बोझ कम रहेंगे और आप हमेशा ही हल्का महसूस करेंगे। 

मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो गांव में दिल्ली में हुआ करती। और इसलिए टीवी भी नहीं था। तब सेल से चलने वाले रेडियो पर सुनकर अपना मनोरंजन किया करता। दादाजी के हाथ से बुनी खटिया पर लेटे लेटे, आंगन में आंखें मीचे जब रेडियो से बिनाका संगीत माला के आमीन सयानी के स्वर कानों तक पहुंचते, मैं बिल्कुल रिलैक्स्ड और सुकून महसूस करता। 

कमियों में जीना मन को संतोष की तरफ बढ़ने का रास्ता बनाकर देता है। और जैसे कि कहा भी जाता है कि संतोषम परम सुखम। भोगी बनकर जिएंगे तो मृग वाली तृष्णा आपको नहीं छोड़ेगी। और आप सामने ही जल होते हुए भी उसे पीने में असमर्थ रहेंगे। 

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