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मैंने चित्त का ज्ञान अपने दादाजी से पाया

चित्त क्या है?

चित्त आपका जहां रहता है वहाँ पर आप का ध्यान रहता है! चित्त और ध्यान दो अलग अलग तत्व हैं|

ध्यान, एक केंद्र है और चित्त उस केंद्र से हमारे मन, तन और आत्मा को जोड़ने वाली रस्सी| अपने ध्यान तक पहुंचने के लिए, अपने चित्त को खोजना और उसे पहचानना बहुत जरूरी है|

कोई भी काम करने के लिए, ध्यान बहुत जरूरी है| ध्यान इसलिए जरूरी है क्यूंकि ध्यान के केंद्र में पहुंचकर और वहीँ समय बिताकर हम अपने मनवांछित पुरुषार्थों को प्राप्त कर सकते है |

तो फिर उस केंद्र तक कैसे पहुँचे?

जब मैंने अपने जीवन में अपने आपको फिट करने के लिए संकल्प लिया, तब मुझे नहिं पता था कि मैं अपने लक्ष्य तक कैसे पहुंच पाउंगा| मगर 5 साल बाद मैंने पाया कि मैं अपने लक्ष्य तक पहुंचा| मैंने अपनी फिटनेस की जर्नी में कई रोमांचकारी पल देखें हैं अभी तक और ये सफर जारी है|

तो कैसे किया मैंने अपने फिटनेस की जर्नी| अपने चित्त को पहचानकर और उसे अपनाकर|

वास्तव में चित्त कहीं नहिं मिलता, ये चित्त रूपी रस्सी हमे खुद ही बनानी होती है| इसका निर्माण हम स्वयं ही कर सकते हैं| और मैंने ये चित्त को तैय्यार करने की कला अपने दादाजी से सीखी| इस पोस्ट में वही शेयर कर रहा हूं|

जब मैं छोटा था तो गर्मियों की छुट्टियों में अपने गाँव जाता| पिताजी हम सबको, मुझे, भाई, बहन, मम्मी जी को लेकर अपने गाँव आते|

मेरे दादाजी गाँव में रहते थे और पूजा पाठ किया करते| मैं भी उनके साथ पीछे पीछे लगा रहता| मुझे उनकी पूजा पाठ से उतना कोई मतलब तब नहिं था| मेरा स्वार्थ भोग एवम प्रसाद में था| पूजा पाठ करने के बाद स्वादिष्ट व्यंजन से इष्ट देवों को भोजन समर्पित कर फिर स्वयं भोजन करते और जो भी उनके पास बैठा होता, उसे वो प्रसाद दिया करते|

इसी दौरान मैंने उनकी कुछ और बातें नोटिस की| वो जहां भी रहें, उनकी पूजा पाठ कभी नहिं छूटती| चाहे घर पर कोई गणमान्य आ जायें या फिर दादाजी कहीं बारात-हाट जायें उनका चित्त पूजा से कभी नहिं हटे|

वो अपनी पूजा पाठ और ईश्वर का भजन जहां रहें वहां करते रहते| उनका चित्त कभी भी ईश्वर से नहिं उचटता|

वो कभी भी कहीं भी रहें, ईश्वर को थोड़े थोड़े समय पर याद करते रहते

इस बात से मैंने ये सीखना कि जिस भी किसी मकसद से आप अपने आपको जुड़ा देखते हैं उसको बार-बार रिपीट करें| बार बार रिपीट करने से आप का अपने मकसद से रिश्ता गहरा होता है|

आप जितना हो सके उसकी अतिशयोक्ति किए बिना उसे रिपीट करें| आप जो भी लाइफ में करना चाहते हैं सिर्फ सोचें नहिं उसके बारे में कुछ ना कुछ करें| अपने मकसद को जरूर रिपीट करे|

दिन – रात नहिं देखते | जब समय मिल जाता अपना पूजा पाठ का समान निकालते और लग जाते|

यदि आपका मकसद है तो उसके लिए जब भी समय मिले वो उपयुक्त है और पर्याप्त है| क्यूंकि आप 24hrs अपने मिशन, अपने मकसद से जुड़ते हैं| आपका मकसद, आपका लक्ष्य नौकरी की तरह नहिं होना चाहिए जिसका टाईम फिक्स हो| मकसद पूरा हो ये जरूरी है|

इस पर वो एक बात हमेशा कहते कि,

एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी पे फिर आध, उसकी संगत साधु केर, कटय कोटि अपराध

अपना पूजा का सामान जहां जाये, साथ ले जाएँ

उनके पास पूजा पाठ करने के लिए पूरी एक किट थी| एक छोटा सा सफेद कंबल जिसे बिछाकर पूजा करने बैठते| देवताओं की पत्थर की गोटियाँ जिसे वो एक छोटी थैली में रखते| उनके जाप की दो मालाएं, चंदन और उनकी रामायण जिसको वो पढ़ते|

अब वो जहां भी जायें, ये सब एक थैले में डाल के चलें| और इस तरह उनको सभी जानते कि महंत आए हैं घर पे, उनको जो बंदोबस्त चाहिए होता वो करते| sabko पता रहता इसलिए सभी उनका उनकी आस्था के लिए सम्मान करते|

मेरी फिटनेस जर्नी में जब मैंने अपना रनिंग गीयर लेकर चलना शुरू कर दिया, सबको पता रहने लागा की पहले मैं रनिंग करूंगा फिर भोजन या और कोई काम| उसी प्रकार वो मुझे भोजन परोसते – सादा और संतुलित|

दादाजी कभी किसी को प्रभावित करने के लिए पूजा नहिं करते थे| वो पूजा प्रभावित रहने के लिए करते

किसी को प्रभावित करने के लिए जिन्होंने रनिंग की है वो बहुत जल्द लेग इंजरी के शिकार हो गए|

आप क्यूंकि सिर्फ अपने लिए कर रहे हैं, और सिर्फ अपने मकसद से अपने आपको सुधार ना चाहते हैं, किसी और को बदलना नहिं, आप अपने गति पर उस काम को करेंगे और हमेशा किसी भी इंजरी से मैं दूर रहा|

आज भी मैं बिल्कुल यही सिधांत बनाए रखा हूं कि किसी को इम्प्रेस करने के बजाय सिर्फ अपने को सुधारने को और बेहतर बनाने के लिए करूँ| कभी अपने अहम का वहाँ नहिं पालता|

इस तरह आप भी अपने चित को स्थापित करें और अपनी जिंदगी बेहतर बनायें|

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